गुरु ही ब्रह्मा विष्णु
हैं, गुरु ही
सत्चिदानन्द,
गुरु बिन जीवन पशु समान, गुरु से
परमानंद,
घट-घट मे जो बस रहा, उसका
नाम है राम,
राम मिलवन के लिये गुरु
ही आवे काम,
जैसे प्रीत चकोर की चाँद
से हो दिन रैन,
वैसे तुम्हरे दरस को राह
तकूँ दिन रैन।
मेरी नय्या भंवर से बचा
लो प्रभु, डूब के भव के सागर मे मर जाऊँगा,
मोह-तृष्णा के तूफान मे
हूँ फंसा, मुझको मालूम नहीं मैं किधर जाऊँगा,
मेरी नय्या...
पाप बोझों से नय्या भरी
है बड़ी, कुछ करो बोझ कम है ये संकट घड़ी,
मेरे गुरुवर की रहमत अगर
हो गयी, तो मैं निश्चित ही फिर भव से तर जाऊँगा,
मेरी नय्या...
वासना और अहम ने है घेरा
मुझे, मोह लालच की आंधी से डग-मग हूँ मैं,
नाथ रोको तुम्ही सारे
तूफान अब, लाख चौरासी मे वर्ना पड़ जाऊँगा,
मेरी नय्या...
जो है आशा का दीपक जलाये
हुये, बुझने दोगे ना तुम है मुझे ये यकीं,
'जौहरी' की ये विनती ना
टालोगे तुम, मोक्ष दोगे मुझे अपने घर जाऊँगा।
मेरी नय्या...
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शशांक जौहरी (लेखक, कवि, फ़िल्मकार)
मेम्बर-द फिल्म राइटर्स एसोसियेशन, मुम्बई, इंडिया
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