Wednesday 3 August 2011

बोलने की आजादी

बोलने की आजादी भी दुश्मन है....अगर तुम बोलो तो
जब हम खुद बोलना चाहते हैं तो हमें आजादी अच्छी लगती है लेकिन जब कोई दूसरा बोलता है तो वह लोकतंत्र पर हमला लगता है..देश के सर्वोच्च पदों पर बैठे नेता और मंत्री भी बिना सबूत एक दूसरे पर जातिवाद सम्प्रदायवाद का इल्जाम लगते हैं और किसी भी घटना को राजनीतिक रंग देने के लिए सम्प्रदायों को भड़काते हैं.. हाल ही में एक प्रेस कोंफ्रेंस में जूता दिखाने वाले को आर एस एस का आदमी बताया गया जो बाद में झूठ साबित हुआ..मुंबई में आतंकी हमले को भी दिग्विजय और पासवान जैसे नेताओं ने हिन्दू संगठन से जोड़ने की कोशिश करके एक सम्प्रदाय को खुश करने की कोशिश की और जांच एजेंसियों को भटकने के लिए अपने सरकारी पदों का दुरूपयोग किया....नेता लोग टी वी पर भी एक दूसरे को अपशब्द बोलते नजर आते हैं और अन्ना हजारे जैसे लोग दिग्विजय जैसे नेता को पागलखाने में भर्ती होने की सलाह देते हैं... अगर आप फेसबुक पर देखें तो लोग अपनी अपनी भाषा में नेताओं और दूसरे लोगों को गाली गलोच देकर और भड़काऊ बातें लिखकर भ्रमित करते हुए मिल जायेंगे.. बहुत से लोगों ने नेताओं की फोटो को गंदे ढंग से दिखाकर भी अपनी और ध्यान खींचा है.. कुछ लोग सम्प्रदाय के नाम पर लोगों को अर्थ का अनर्थ बनाकर सामग्री प्रस्तुत करते हुए मिल जायेंगे. सवाल दोहरे माप दंड का है.. एक तरफ जहाँ सत्ता पक्ष के और दबंग लोग कुछ भी बोल कर बेशर्मी से अपनी बात पर डटे रहते हैं वहीँ दूसरे लोग सच बोल कर भी कटरीना कैफ की तरह माफ़ी मांगते हुए दिखाई देते हैं.. छोटे लोग बड़ों से ही आचरण और व्यवहार करना सीखते हैं अतः जबतक तथाकथित बड़े लोग अपनी भाषा शैली सही नहीं करेगे और उनपर दंडात्मक कार्यवाही नहीं होगी वो छोटों से भी सही आचरण की उम्मीद नहीं कर सकेंगे.. जन लोकपाल के माध्यम से ही सही सरकारी पदों पर बैठे लोगों के टी वी के माध्यम से फैलाने वाले झूठे और प्रमाणरहित बयानों पर अगर प्रतिबन्ध नहीं लगेगा और दंडात्मक कार्यवाही नहीं होगी तो जनता भी फेसबुक जैसे माध्यमों से आग उगलने से नहीं रोकी जा सकेगी..सत्ता पक्ष के लोग पुस्तकों पर भी प्रतिबन्ध लगा कर लेखकों की जुबान बंद करलें लेकिन इन्टरनेट पर काबू नहीं कर पायेंगे.. शायद आप लोगों को पता होगा कि एक लेखक पी एन ओक ने एक पुस्तक के माध्यम से जनता को बताया था की ताज महल वास्तव मैं शिव जी का मंदिर तेज-ओ-महालय है... जिसे जयपुर के राजा मान सिंह ने बनवाया था और इसमें तहखाने में देवी देवताओं की खंडित मूर्तियाँ हैं.. सरकार यूं एन ओ के सामने खुलवा कर देख ले..अगर झूठ निकले तो हमें सजा दे..लेकिन इंदिरा जी ने उस पुस्तक पर प्रतिबन्ध लगा दिया था... ऐसी ही अनेकों पुस्तकें जो सत्ता पक्ष को पसंद नहीं आतीं बंद कर दी जाती हैं.. ऐसी दोगली नीति क्यों? शशांक जौहरी (लेखक/ कवि)



मेरे लेखों और कविताओं को कुछ लोग कोपी पेस्ट कर के प्रसारित कर रहे हैं.. मेरा उनसे अनुरोध है कि वो मेरी कृति के साथ मेरा नाम अवश्य रखें उसे हटायें नहीं और अपनी कृति बना कर प्रस्तुत न करें. यह कोपी राइट का उलंघन है . धन्यवाद
मेरी कृतियों को प्रकाशित करने के लिए मुझे संपर्क कर सकते हैं.. , शशांक जौहरी (लेखक/कवि) 7503051717 , 7503051818

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